विस्तृत जानकारी

इस सुनियोजित हत्या की शिकार मृतका ज्योति विश्वकर्मा पुत्री राजेन्द्र विश्वकर्मा, निवासी श्रीपुर, थाना जेठवारा प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश की बी.ए. की प्रतिभावान छात्रा थी, जिसकी जमीनी रंजिश के चलते अभियुक्तों ओमप्रकाश मौर्या पुत्र हीरालाल मौर्या, ओम प्रकाश की धर्मपत्नी, प्रमोद कुमार एवं विनोद कुमार मौर्या पुत्र हीरालाल मौर्या निवासी श्रीपुर जेठवारा, प्रतापगढ़ द्वारा दिनांक २५ सितम्बर २०१५ को सायं ५ बजे शौच से लौटते वक्त केरोशीन तेल डालकर सरेआम जिन्दा आग लगा दिया गया, चीखती चिल्लाती हुयी ज्योति घर की तरफ भागी, उस बीच वंहा पर उसे बचाव करने कोई नहीं आया। गरीबी का दंश झेल रहा ज्योति का परिवार उसे नजदीकी सरकारी अस्पताल ले के गया, वहां से उसे प्राइवेट नर्सिंग हॉस्पिटल ले जाया गया, सोशल मीडिया पे लोगों से इलाज के लिए चंदे की अपील की गयी, ज्योति को स्वरूपरानी हॉस्पिटल इलाहबाद ले जाया गया जहा धन एवं बेहतर इलाज के आभाव में शनिवार प्रातः २ बजे ज्योति की मृत्यु हो गयी। इस मामले में घटना के दिन प्रथम सूचना दर्ज कराने गए लोगों को यस.ओ. जेठवारा श्री चन्द्रबली यादव द्वारा भगा दिया गया, कुछ स्थानीय लोगों के सहयोग से प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज की जा सकी।

विवादित जमींन पर अभियुक्तों की नजर काफी दिनों से थी, बार बार ज्योति के परिजनों को जान से मारने की धमकियाँ मिल रही थी, तथा अभियुक्तों द्वारा विवादित जमींन पर अवैध निर्माण किये जाने की सूचना जेठवारा थाने में २७ अगस्त २०१५ को दी गयी थी, हलके के दो सिपाहियों तथा यस.ओ. की मिलीभगत से अभियुक्तों के हौसले बुलंद रहे जिसकी परिणति अमानवीय जघन्य हत्या के रूप में हुयी। इलाज के दौरान अभियुक्तों द्वारा मुकदमा वापस लेने एवं ऐसा नहीं हुआ तो अन्य लोगों का यही हश्र होगा की धमकी देते रहे। ज्योति कीमृत्यु होते ही पुलिस ने तत्काल अभियुक्तों को गिरप्तार कर लिया और फ़ोर्स तैनात कर पहले से ही गड्ढा खोद कर, मामले को रफा दफा करने का प्रयास किया। यस.ओ. जेठवारा की भूमिका मामले में सुरु से ही संदिग्ध रही है। बीच में कई बार पुलिस ने घटना के स्वरुप को बदलने का प्रयास भी किया।

२६ अक्टूबर २०१५ को विश्वकर्मा समाज मुंबई द्वारा स्वर्गीय ज्योति विश्वकर्मा को न्याय दिलाने हेतु मुंबई के आजाद मैंदान में धरना प्रदर्शन

धरना प्रदर्शन में उपस्थित लोगों की सूची

जान बाच सकती थी, बेहतर इलाज से

ज्योति की मौत से निराश और पस्त संजय कुमार कहते हैं, “कभी-कभी लगता ही नहीं, बल्कि यह साबित भी हो जाता है कि यह देश, यहां का लोकतंत्र और यहां संविधान सब कुछ चंद लोगों के लिए ही है। आज़ादी के बाद जिन्हें मौक़ा मिला उन्होंने अपना ही विकास किया। बाक़ी लोगों की खोज-ख़बर लेने वाला कोई नहीं। ज्योति को बेहतर मेडिकेयर मिलता तो उसकी जान बच सकती थी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। काश ऐसा हो पाता।” जो भी हो ज्योति को जिंदा जलाए जाने की घटना के चलते उत्तर प्रदेश एक बार फिर शर्मसार हुआ है।

२३ अक्टूबर २०१५ विश्वकर्मा प्रतिनिधि दल मुंबई द्वारा कुंवर हरिवंश सिंह (वर्तमान समय में जेठवारा के सांसद हैं) के साथ ज्योति विश्वकर्मा को न्याय दिलाने के लिए उनके ऑफिस में सभा

डॉक्टर थे हड़ताल पर ज्योति जलन से कराहती रही

बहरहाल, दो किलोमीट दूर रहने वाले लड़की के बड़े पिता को बुलाया गया, क्योंकि ज्योति के पिता सउदी अरब में कारपेंटरी के दिहाड़ी मज़दूर हैं। परिजन आनन-फानन ज्योति को लेकर प्रतापगढ़ जिला अस्पताल गए, लेकिन वहां उसे फौरन इलाहाबाद ले जाने की सलाह दी गई। इलाहाबाद में सरकारी अस्पताल में ले गए, जहां डॉक्टर हड़ताल पर थे। मजबूरी में घर वाले उसे सिविल लाइंस के एक निजी अस्पताल ले गए। बीरेंद्र अस्पताल में ज्योति का इलाज शुरू हुआ। बाद में मामला उनसे भी नहीं संभला तो उसे इलाहाबाद के स्वरूपरानी नेहरू अस्पताल में भेज दिया गया। चहरे को छोड़कर ज्योति का बाक़ी सारा जिस्म जल चुका था।

१८ अक्टूबर को विश्वकर्मा डेवलपमेंट सोसाईटी व समाज दिल्ली द्वारा जंतर मंतर मैदान पर धरना प्रदर्शन

देहाडी करने वाले मजदूर की बेटी

ज्योति उस समाज की थी जो आज़ादी के सात दशक बाद आज भी प्रजा मानी जाती है और इस समाज के इक्का दुक्का लोग ही गांवों में पाए जाते हैं। मौर्य बाहुल्य श्रीपुर गांव में ज्योति का परिवार इकलौता विश्वकर्मा परिवार है। माता-पिता और चार बेटियों वाले परिवार में ज्योति की सबसे बड़ी थी। बाक़ी तीन बहने 14, 10 और सात साल की हैं। उसके पिता राजेंद्र विश्वकर्मा कारपेंटरी का काम करते हैं और इस समय सउदी अरब में दिहाड़ी मज़दूरी कर रहे हैं। आने जाने का किराया न होने और सउदी सरकार द्वारा इजाज़त न देने के कारण वह बड़ी बेटी तो देखने भी नहीं आ सके।

११ अक्टूबर २०१५ को जेठवारा में विश्वकर्मा समाज द्वारा आयोजित शोक सभा

शिक्षिका बनाना चाहती थी ज्योति

वह सपने देखने वाली लड़की थी। देहात और ग़रीब परिवार की लड़की करियर बनाने के लिए कृतसंकल्प थी। वह पढ़-लिखकर किसी स्कूल या विद्यालय में टीचर बनना चाहती थी, ताकि समाज की निरक्षरता दूर करने में ज़्यादा तो नहीं थोड़ी-बहुत मदद कर सके। इसलिए वह बीए की पढ़ाई कर रही थी। लेकिन शायद प्रकृति को यह भी मंज़ूर नहीं था। पड़ोसियों द्वारा क़रीब 90 फ़ीसदी जलाई गई वह लड़की आठ दिन तक इलाहाबाद के स्वरूपरानी नेहरू अस्पताल में मौत से लड़ती रही, लेकिन शनिवार (तीन अक्टूबर) को तड़के ढाई बजे उसने काल के सामने हथियार डाल दिए। उसकी जिस्म ठंडा हो गया और उसके सपने को भी मौत निगल गई।

११ अक्टूबर २०१५ को विश्वकर्मा समाज मुंबई द्वारा स्वर्गीय ज्योति विश्वकर्मा को न्याय दिलाने हेतु सभा

सभा में उपस्थित लोगों की सूची

माँ ने बुझाई आग!!

जहां उसकी मां मालती विश्वकर्मा शाम को परिवार के छह लोगों के लिए खाना बना रही थी। जब जलती हुई ज्योति घर के अंदर घुसी तो मां और तीन बहनें घबरा गईं कि ज्योति के साथ यह क्या हो गया? सबने कंबल डालकर आग बुझाया लेकिन ज्योति पूरी तरह जल चुकी थी।

६ अक्टूबर २०१५ राष्ट्रवादी जनशक्ति पार्टी द्वारा केंद्र सरकार और उत्तर प्रदेश की सरकार को आग्रह पत्र

तमाशबीन रहे लोग!!

पास-पड़ोस का कोई व्यक्ति रक्षा करने के लिए भी नहीं आया। असहाय ज्योति का जिस्म जलता रहा, वह चिल्लाती रही लेकिन सब तमाशाबीन बने थे। आसपास खड़े थे, लेकिन उसे बचाने या उसके जलते शरीर पर कंबल डालने कोई नहीं आया। अंततः जलती हुई ज्योति ने ख़ुद बचने का प्रयास किया और अपने घर में भागी।

२७ सितम्बर २०१५ एवं ५ अक्टूबर २०१५ को विश्वकर्मा समाज द्वारा उत्तर प्रदेश सरकार को ईमेल

वह सपने देखने वाली लड़की थी

देहात और ग़रीब परिवार की लड़की करियर बनाने के लिए कृतसंकल्प थी। वह पढ़-लिखकर किसी स्कूल या विद्यालय में टीचर बनना चाहती थी, ताकि समाज की निरक्षरता दूर करने में ज़्यादा तो नहीं थोड़ी-बहुत मदद कर सके। इसलिए वह बीए की पढ़ाई कर रही थी। लेकिन शायद प्रकृति को यह भी मंज़ूर नहीं था। पड़ोसियों द्वारा क़रीब 90 फ़ीसदी जलाई गई वह लड़की आठ दिन तक इलाहाबाद के स्वरूपरानी नेहरू अस्पताल में मौत से लड़ती रही, लेकिन शनिवार (तीन अक्टूबर) को तड़के ढाई बजे उसने काल के सामने हथियार डाल दिए। उसकी जिस्म ठंडा हो गया और उसके सपने को भी मौत निगल गई।

२६ सितम्बर २०१५ - पहली रिपोर्ट

स्वर्गीय ज्योति विश्वकर्मा

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