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जघन्यता के आगोश में दफन हुये सपने

जघन्यता के आगोश में दफन हुये सपने प्रतापगढ़। वह सपने देखने वाली लड़की थी। देहात और ग़रीब परिवार की लड़की अपना कैरियर बनाने के लिए कृतसंकल्पित थी। वह पढ़-लिखकर किसी स्कूल या विद्यालय में टीचर बनना चाहती थी, ताकि समाज की निरक्षरता दूर करने में ज़्यादा तो नहीं थोड़ी-बहुत मदद कर सके। इसलिए वह बीए की पढ़ाई कर रही थी। लेकिन शायद प्रकृति को यह भी मंज़ूर नहीं था। पड़ोसियों द्वारा क़रीब 90 फ़ीसदी जलाई गई वह लड़की आठ दिन तक इलाहाबाद के स्वरूपरानी नेहरू अस्पताल में मौत से लड़ती रही, लेकिन 3 अक्टूबर को तड़के ढाई बजे उसने काल के सामने हथियार डाल दिए। उसका जिस्म ठंडा हो गया और उसके सपने भी जघन्यता के आगोश में दफन हो गये।