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Social Worker : Mahavir Prasad Panchal - Mahavirprasadpanchal@gmail.com

Mahavir Prasad Panchal पर्यावरण प्रेमी श्री महावीर प्रसाद पांचाल, ग्राम: सहन, तहसील: नैनवा, राजस्थान के रहने वाले हैं। इनकी पढ़ाई-लिखाई, इनका रहन-सहन, लालन-पालन सब मध्यम परिवार से हुआ है जिसकी आर्थिक स्थिति बहुत जायदा अच्छी नहीं थी। जिले में एक छोटी सी ऑटोपर्ट्स की दूकान चलाते हैं और उसी से इनका और इनके परिवार का गुजर-बसर होता है। पति-पत्नी और चार बच्चों का इनका पूरा परिवार है।

दुनिया में कुछ खास लोग होते हैं जिन्हे कुछ अलग करने की चाहत होती है। उसी में से एक महावीर प्रसाद पांचाल नाम भी है, जिन्हे बचपन से ही पेड़-पौधों से बहुत लगाव था जिसे पूरा ना कर पाने की कशिश इन्हे हमेशा चुभती रहती थी। घर की जिम्मेदारियां और परिस्थितियां अनुकूल ना होने के कारण ज्यादा कुछ कर भी नहीं पा रहे थे, लेकिन फिर भी कभी इनकी इच्छा शक्ति कम नहीं हुयी। हमेशा कुछ ना तिकड़म लगाते ही रहते थे कि ताकि इनकी अधूरी इच्छा पूरी हो सके।

20 जुलाई 2013 की बात है, ये अपने दूकान पर फुर्सत मे बैठे थे और मन ही मन इच्छा पूर्ति के लिए गणित लगा रहे थे तभी अचानक इन्हे बचपन की याद आ गई। कैसे खेल-खेल में घर बनाते थे, उस घर को नीम की डालियों से सजाते थे और उनके नीचे गुड्डे-गुड्डिया आराम फरमाते थे, बाग़-बगीचों में खेलना, इत्यादि। इन सभी से इनके मन का संताप और जाग गया। उसी इनके एक करीबी मित्र आये और बातों ही बातों में इन्होने इनके मन की व्यथा उन्हें बताई। सब कुछ सुनने के बाद इनके मित्र ने इन्हे पेड़ लगाने की सलाह दी। जगह भी तय हुआ, कब पेड़ों को लगाया जाय वो भी तय हुआ लेकिन फिर वही आर्थिक तंगहाली आड़े आ रही थी।

कुछ दिन पश्चात इनके एक और परम मित्र इनके दूकान पर आये हुए उन्हें गुटखा खाते देख, गुटखे के नुकसान को बताया और साथ में सलाह भी दी कि जितने का गुटखा खाते हो उतने का कुछ और काम कर लिया करो। उस समय ये रोज का 30-40 रुपये का गुटखा खा जाते थे। परम मित्र की सलाह पर सबसे पहले इन्होने गुटखा खाना छोड़ दिया। और उसी दिन इनके दिमान में ये ख़याल आया कि जिस पैसे ये गुटखा कहते थे, क्यों न उन पैसों को वृक्षारोपण के पुनीत कार्य में लगाया जाय। दिशा मिल चुकी थी, और उसी समय इन्होने प्रति वर्ष 100 पौधे लगाने का संकल्प लिया।

प्रथम वर्ष में 100 पौधे खरीद कर उसे पास के ही हनुमान वाटिका के प्रांगण में लगा दिए जो कि लगभग 100 बीघा भूमि थी। बबूल की टहनियों से उनकी मजबूत बाढ़ बनाकर उसकी देख-रेख शुरू हो गयी। अफ़सोस की बात, उस वर्ष अधिक वर्षा और अनुभव की कमी के कारण बहुत से पौधे गल गए। वर्ष पश्चात उनकी जगह पुनः नये पौधे व्यवस्थित ढंग से लगाए गये, पौधे बढ़ने लगे, गर्मी के दिनों आस-पास के जानवरों ने भी बहुत परेशान किया। किसी न किसी तरह से हनुमान वाटिका के प्रांगण में घुस आते और पौधो को खा जाते। जब-जब पौधों को नुकसान होता था तब-तब मैं उन्हें पहले से दुगुना सुरक्षा प्रदान करता था, और इसी तरह सारे पौधे बड़े होते चले गए।

कहते हैं ना, जब कोई अच्छा काम होता है तो है, ईश्वर उस काम की हर तरह से परीक्षा लेता है। विधि का विधान 1 मार्च 2016 को विद्युत लाइन का तार टूटने से हनुमान वाटिका में आग लग गई और लगभग दो सो पौधे जलकर राख़ हो गए। वह दिन इनके जिंदगी का सबसे ह्रदयविदारक दिन था। उस दिन इन्होने इतना रोया जितना इनकी माँ की मृत्यु के दिन भी नहीं रोये थे। इनके मार्गदर्शक प्रेरणास्रोत गुरु इनके हौसले पुनः बढ़ाया और एक बार फिर वृक्षारोपण का आशीर्वाद दिया।

सब कुछ जलकर तहस-नहस हो चूका था, खर्चा भी काफी हो चूका था, और अब उतना बजट भी नहीं था कि पुनः सब कुछ अच्छा हो जाय। लेकिन बचे हुए पौधों के साथ पुनः शुरुवात होती और पैसों के लिए इन्होने घर पर ही दाढ़ी बनाने का काम शुरू कर दिया। तब इनके बच्चे पापा की पीड़ा देखकर आगे आये और छोटे वाले बच्चे ने बोला "पापा आप एयरटेल की डिश को हटा कर फ्री वाली डिश लगा दो" और जो पैसे बचेंगे उन्हें वृक्षारोपण में लगा दो। इनका सर गर्व से ऊँचा हो गया और हो भी क्यों ना बच्चों ने बात ही ऐसी बोली जो अंतरात्मा को छू गयी। इसी तरह जैसे-तैसे इनका मुसीबतो से सामना होता रहा और ये अपने काम में लगे रहे। आज हनुमान वाटिका मे लगभग 600 पौधे लहलहा रहे है जिनमे से लगभग 250 पौधे पेड़ बन गए है।

इस कार्य के लिए इन्हे उपखण्ड अधिकारी नैनवां जिला कलेक्टर तथा रणथम्भोर बाघ परियोजना, सवाई माधोपुर द्वारा सम्मानित किया जा चूका है। इसके अलावा इन्हे जिला स्तरीय वृक्ष वर्धक पुरुस्कार 2016 भी मिल चूका है। इनके कार्य से प्रभावित होकर बॉलीवुड स्टार प्रदीप काबरा तथा पीपल नीम तुलसी अभियान के डॉ धर्मेंद्र पटेल भी हनुमान वाटिका मे आकर वृक्षारोपण कर चुके है। इनका कहना है कि ये पौधे नहीं पेड़ लगाते हैं, और सभी से अपेक्षा भी रखते हैं। 500 पौधे लगाने से बेहतर है कि आप 5 पेड़ लगाएं, तात्पर्य यह है कि आज कल लोगो में पौधे लगाने का फैसन हो गया है। पौधे लगाए, फोटो खिचाया, अखबारों मे छा गए और पौधों को भूल गए। इनका कहना यह है कि आप भले ही 5 पौधे ही लगाओ लेकिन उनके पेड़ बनने तक नियमित देखभाल करो। पर्यावरण से लगाव के कारण ये प्रति दिन ज्यादा से ज्यादा समय पौधो की देखभाल में लगते हैं। इसी दिनचर्या के साथ इनकी कोशिश है कि पूरा राज्य और फिर देश लहलहा जाए।