Public Profile Details

Doctor : Anil Kumar Vishwakarma - anilkumar293@rediffmail.com

Anil Kumar Vishwakarma बहु प्रतिभा के धनी श्री अनिल कुमार विश्वकर्मा जी का जन्म 11 सितम्बर 1981 को उत्तर प्रदेश के देवरिया शहर में हुआ है लेकिन जन्म के ६ महीने बाद ही इन्हे इनकी माता की ममता से वंचित होना पड़ा। उसके बाद इनके पिता जी श्री धर्मदेव विश्वकर्मा इनके माता भी बन गए और बड़ी कठिनाई से इनका लालन और पालन किया। लेकिन माँ, माँ होती है जिसकी कमी पिता कभी भी पूरी नहीं कर सकता। सिर्फ ६ महीने की आयु में माता के स्वर्गवास होने से इन्हे सिर्फ माता की ममता से नहीं अपितु भूख से भी वंचित होना पड़ा था। वो कहते हैं ना जब ईश्वर एक रास्ता बंद कर देता है तो दूसरा खोल देता है। तब उसी ईश्वर ने पड़ोस की माता सामान देवी के ह्रदय में इनके लिए ममता का दरवाजा खोल दिया और उसी फलस्वरूप इन्हे उस देवी का स्नेह प्राप्त हुआ। दो साल उस देवी ने इन्हे अपना स्तनपान करा कर इन्हे बड़ा किया। हमारे समाज के लिए बड़े गर्व की बात है कि इनके पिता जी आर्मी से थे जिन्होंने द्वितीय विश्व में चीन के खिलाफ लड़ाई में भागीदार हुए थे।

इनकी प्रारंभिक शिक्षा इनके पैतृक गाँव में संपन्न हुयी और उसके बाद की इंटरमीडिएट तक की शिक्षा इन्होने इनके अध्यापक मौसाजी के यँहा पूरी की। इसी बिच जब वे दसवीं में थे, तभी इनके पिता जी का भी स्वर्गवास हो गया और ये पूरी तरह से अकेले हो गए। हालाँकि तब भी इनकी पढ़ाई रुकी नहीं, इन्हे इनके भाईयों और रिश्तेदारों के भरपूर सहयोग और खुद के हौसले के भरोसे ये दिनदूनी रातदूनी अपनी पढ़ाई में नए परचम लहराते गए। इसी दौरान इनके अंदर कई नयी खूबियों ने भी जन्म लिया और इसी फलस्वरूप इनकी दिलचस्पी ज्योतिष विद्या, जड़ी-बूटी विद्या तथा अध्यात्म में बढ़ती चली गयी। 1989 से लेकर 1992 तक का इसका समय स्वर्णिम था, जब इन्होने पढ़ाई के साथ-साथ उपरोक्त सभी विषयों में सफलता प्राप्त की। इनकी तब की दिनचर्या बड़ी मेहनत वाली थी, सुबह नौ बजे से दोपहर एक बजे तक आईटीआई की क्लास, एक बजे के बाद से दो बजे तक ज्योतिष और कर्मकाण्ड की पढ़ाई और तत्पश्चात दो बजे से साढ़े तीन बजे तक अध्यात्म और आयुर्वेद की पढ़ाई।

1992 में अलवर राजस्थान के नामी इलेक्ट्रॉनिक कंपनी में इन्हे कार्य करने का सुनहरा अवसर प्राप्त हुआ। उसी दौरान इन्होने गायत्री परिवार शान्तिकुञ्ज हरिद्वार से जुड़कर अपने अध्यात्म को और बल दिया और हरिद्वार के देवसंस्कृति विश्वविद्यालय में अध्यात्म और संगीत की गहन शिक्षा प्राप्त की। उसके बाद प्राकृतिक चिकित्सा परिषद नयी दिल्ली से DNYS, DAMS, इत्यादि डिग्री भी प्राप्त की। शैक्षणिक (DNYS, DAMS, MDAyu.Medi), तकनिकी (इलेक्ट्रॉनिक्स), चिकित्स्कीय (आयुर्वेदोपैथी, योगापैथी, यज्ञोपैथी, वैद्योपथी), संगीतीय (तबला वादन, शास्त्रीय गायन, गजल, भजन, लोक संगीत), अध्यात्मिकीय (वैदिक कर्मकांड एवं संस्कार, ज्योतिष, वास्तुशास्त्र, हस्तरेखा) ये सभी इनके मुख्य योग्यताएं हैं।

वर्तमान समय में ये विश्वकर्मा महासभा गोरखपुर एवं क्षेत्रीय महासभा देवरिया तथा गायत्री परिवार से जुड़कर मानव और समाज सेवा में अपना योगदान दे रहे हैं। इनका अपना जीवन ही बहुत उतार-चढ़ाव वाला है इसीलिए ये सदैव समाज सेवा के तत्पर रहते हैं। इनका मानना है कि, समाज मे व्याप्त कमियों को दूर करने के लिए शिक्षा एवं सतसंग जरूरी है। समाज के लोगों को अपने वंश, सामाजिक संस्कृति तथा सामाजिक अध्यात्म सभी की जानकारी होनी चाहिए। तभी समाज आगे बढ़ सकता है और अपने मान सम्मान को बनाए रख सकता है।