Public Profile Details

Social Worker : Baba Shobhnath Das - kumardileep42@gmail.com

Baba Shobhnath Das "जहां रहेगा वहीं रोशनी‌ लुटाएगा, किसी चिराग का अपना मकां नहीं होता" उक्त कहावत त्यागमूर्ति बाबा शोभनाथ दास जी पर एकदम सटीक बैठती है। अपने जीवन काल‌ में बचपन से ही प्रभु विश्वकर्मा भगवान के चरणो में जीवन को न्यौछावर करने वाले बाबा शोभनाथ दास आज भी‌ सामाजिक उत्थान के लिए भगवत भक्ति में लीन है।

अपने जीवन‌ के लगभग 90 बसन्त देख चुके बाबा शोभनाथ दास शुरू से ही विश्वकर्मा भगवान के उपासक‌ रहे। श्री बाबा गोपालदास बर्फानी‌ महाराज इनके गुरु रहे। इनके मन में‌ क्षेत्र के किसी सुगम स्थान पर भगवान विश्वकर्मा की मंदिर की स्थापना की सोची और अपने मित्रों से विचार विमर्श कर मंदिर स्थापना का संकल्प‌ लेकर घर बार त्याग दिया। लगभग दस वर्ष तक‌ इन्होंने मंदिर निर्माण में‌ लोगों से सहयोग के अपील‌ की, पांच पैसा तक चन्दा लिया और विभिन्न बाजारों में पेटियां भी घुमाई। अन्ततः जाकर गोमतेश्वर महादेव सिहौली के पास एक भव्य श्री विश्वकर्मा मंदिर का निर्माण कराया और अपने गुरु श्री बाबा गोपालदास बर्फानी महाराज से मूर्ति‌ में प्राण प्रतिष्ठा करवाई। यही नही अपनी त्याग और इच्छा की बदौलत मंदिर में पुजारी‌ बनकर अपना समय भगवान की सेवा में‌ लगा दिया। इनकी‌ ही देन से श्री विश्वकर्मा मंदिर परिसर में हनुमान मंदिर, दुर्गा मंदिर, बाबा गोपाल दास की मूर्ति स्थापित हुई। अपनी इच्छाओं के दम पर इन्होने राधा कृष्ण मंदिर की नींव भी डाली जो अभी निर्माणाधीन है। यही‌ नहीं धरती को मां‌ और वृक्ष को अपना पुत्र समझने वाले बाबा शोभनाथ दास अपने जीवन काल में पांच सौ पौधरोपण किया और उनकी रक्षा की। उनका‌ कहना है कि सिर्फ पौधरोपण करना ही पर्याप्त नहीं होता इनको अपने‌ पुत्र की तरह पालना‌ और सुरक्षा करना भी होता है। अपने जीवनकाल में चारों धाम की यात्रा और बहुत सारे तीर्थ स्थानों की यात्रा कर चुके बाबा ने हमेशा अपने पास आने वाले जिज्ञाशु की यथाशक्ति मदद की । इनका यह भी मानना है वृक्ष लगाना‌ चारो धाम की यात्रा करना बराबर होता है।

सामाजिक संरचना के क्षेत्र में समाज को शिक्षा देने के उद्देश्य से इनके दिशा निर्देश में गोमती पब्लिक स्कूल का निर्माण‌ कराया गया जहां भविष्य का भारत आज शिक्षा ग्रहण करता है। सामाजिक क्षेत्र में जीवन का त्याग करने वाले बाबा शोभनाथ दास का त्याग की मूर्ति कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी।