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News Editor : Kamlesh Pratap Vishwakarma - news@vishwakarmakiran.com

Kamlesh Pratap Vishwakarma विश्वकर्मा समाज में जब भी सामाजिक सामंजस्य की बात होगी तो, निश्चित रूप से लोगों की जुबान पर श्री कमलेश प्रताप विश्वकर्मा का नाम भी प्राथमिकता में होगा। 'विश्वकर्मा किरण' नामक हिंदी साप्ताहिक पत्रिका का प्रकाशन कर देश-विदेश के सामाजिक बन्धुओं में जागरूकता लाने का प्रयास करने वाले श्री कमलेश प्रताप विश्वकर्मा ने अपना जीवन सामाजिक कार्य के लिए ही समर्पित कर दिया है। यह पत्रिका के माध्यम से सामाजिक कार्य को गति प्रदान कर रहे हैं।

1 जनवरी, 1976 को उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के एक छोटे से गांव मुस्तफाबाद (भगासा, पट्टीनरेन्द्रपुर) में जन्म लेने वाले कमलेश प्रताप विश्वकर्मा किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं। इनकी लेखनी की धाक पूरे देश में गूंजती है। पत्रिका में प्रकाशित इनके संपादकीय की बहुत सराहना होती है। यह एक सामान्य परिवार से हैं। इनके पिता का नाम श्री रामनवल विश्वकर्मा है, जो कभी आरा मिल मालिक हुआ करते थे, परन्तु वर्तमान में खेती-बाड़ी का काम देख रहे हैं। श्री कमलेश प्रताप विश्वकर्मा का जीवन बेहद सादा और संघर्षपूर्ण है। अभाव की जिन्दगी जीने के बावजूद अपने संकल्प को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं जो कि वर्णन करने के लायक है।

6 दिसंबर, 1999 को जौनपुर जिले से 'विश्वकर्मा किरण' हिंदी साप्ताहिक पत्रिका का प्रकाशन आरम्भ कर, समाज में सूचना क्रांति का बिगुल फूंककर लोगों में जागरूकता लाने का दृढ़ निश्चय किया। जिस समय पत्रिका का प्रकाशन आरम्भ हुआ, उस समय की पारिवारिक स्थिति ठीक होने के कारण जो कुछ भी था वो सब पत्रिका प्रकाशन के लिए समर्पित कर अपना मार्ग निर्धारण कर लिया। कौन जानता है भविष्य में क्या होने वाला है और परिस्थितियां कब अनुकूल से परिकुल हो जांयेंगी। चन्द दिनों में समय ने करवट लिया और इनके द्वारा संकल्पित मार्ग में बाधा पड़ने लगी। धीरे-धीरे आर्थिक स्थिति खराब होते चली गयी और पत्रिका प्रकाशन के लिए लिए संघर्ष करना आरम्भ हो गया। ऐसी परिस्थितियों में लोग कुछ समय के लिए अपने आपसे मुंह मोड़ लेते हैं, लेकिन ये डटे रहे और सभी प्रकार की परिस्थियों को स्वीकार कर आगे बढ़ते रहे।

समाज के भरोसे समाज के लिए संकल्पित मार्ग को गति देते-देते पत्रिका प्रकाशन का 19 वर्ष लग गया परन्तु परिस्थितियां अभी भी 19 साल पुरानी ही हैं। श्री कमलेश प्रताप विश्वकर्मा का जीवन स्तर 19 साल पूर्व जैसा था, वैसे आज भी है, बढ़ी है तो सिर्फ उम्र। समाज के लिए संकल्पित एक व्यक्ति के मन में समाज की जो पीड़ा झलकती है वह शब्द बनकर कभी संपादकीय पृष्ठ पर तो कभी अन्य पृष्ठ पर लेख के रूप में लोगों को पढ़ने के लिए मिल जाता है।

अभाव की जिन्दगी जीने के बावजूद इन्होंट कभी अपने को आहत महसूस नहीं किया। किसने सहयोग किया, किसने नहीं किया यह इनके लिए मायने नहीं रखता है। जबकि इनके ऊपर पारिवारिक बोझ भी है। माता-पिता, पत्नी, दो बेटा और दो बेटी और स्वयं सहित कुल आठ लोगों का परिवार है, जिसका पूरा खर्च इन्हें ही उठाना पड़ता है। आय का और कोई साधन नहीं, हां समाज के कुछ ऐसे लोग हैं जो इनकी मेहनत और पीड़ा को समझते हैं जिनकी बदौलत यह प्रकाशन और परिवार को चल रहा है।

अपने संकल्प को पूरा करने के उद्देश्य से वर्ष 2007 में ये लखनऊ आ गए। प्रकाशन को आगे बढ़ाने, सामाजिक दर्द को सुनने और निराकरण के उद्देश्य से लखनऊ में इन्होंने अपना ठिकाना बनाया। उस समय ये आर्थिक अभाव की मार कुछ ज्यादा ही झेल रहे थे और उसी फलस्वरूप प्रकाशन बिल्कुल बन्द होने के कगार पर आ गया था। उसी दौरान लखनऊ में एक सामाजिक व्यक्ति के यहां उनके ऑफिसियल कार्य को संभालने का अवसर मिला। हालाँकि वंहा जो भी पैसा तनख्वाह के रूप में मिलते थे वो काफी नहीं था, लेकिन फिर भी किसी ना किसी तरह जिंदगी चल ही रही थी। पत्रिका प्रकाशन को पुन: कुछ गति मिली परन्तु गति मिलते ही पुन: बाधा आ गयी। जिस सामाजिक व्यक्ति के यहां पर कार्य कर रहे थे, उन्हें इनका पत्रिका प्रकाशन नागवार गुजर रहा था। फिर क्या था इन्होंने लखनऊ में ही किराये पर एक कमरा लिया और अपनी प्रकाशन को पूरा करने की जोड़-तोड़ कोशिश में लग गए।

श्री कमलेश प्रताप विश्वकर्मा के बारे में कुछ लोग बताते हैं कि, कई तरह के अभाव के बावजूद प्रकाशन साथ-साथ पीड़ित और शोषित व्यक्तियों के हक़ के लिए ये सदैव तैयार रहते हैं। कभी-कभी तो पैसे ना होने के समय अगर किसी पीड़ित ने याद किया है तो अपने साइकिल से या फिर पैदल ही वंहा पहुँच जाते हैं। ऐसे अभाव और संघर्ष के बीच अपने संकल्प पर सतत कार्य करने वाले ऐसे बिड़ले लोग ही मिलेंगे। पत्रिका प्रकाशन के माध्यम से सामाजिक लोग के अन्दर 'वैचारिक क्रांति' लाना ही इनका प्रथम उद्देश्य है, इसके लिए जो भी संघर्ष करना होगा ये करने के लिए तत्पर हैं। इनका मानना है कि जिस दिन समाज में 'वैचारिक क्रांति' आ जायेगी उसी दिन एकता भी झल्केगी और सामाजिक विकास भी।