To post comments on this Lekh you need to be logged in.
जब मैं छोटा था, शायद दुनिया
बहुत बड़ी हुआ करती थी..
मुझे याद है मेरे घर से स्कूल तक का
वो रास्ता, क्या क्या नहीं था वहां,
चाट के ठेले, जलेबी की दुकान,
बर्फ के गोले, सब कुछ,
अब वहां मोबाइल शॉप,
विडियो पार्लर हैं,
फिर भी सब सूना है..
शायद अब दुनिया सिमट रही है...
जब मैं छोटा था,
शायद शामें बहुत लम्बी हुआ करती थीं...
मैं हाथ में पतंग की डोर पकड़े,
घंटों उड़ा करता था,
वो लम्बी साइकिल रेस,
वो बचपन के खेल,
वो हर शाम थक के चूर हो जाना,
अब शाम नहीं होती, दिन ढलता है
और सीधे रात हो जाती है,
शायद वक्त सिमट रहा है...
जब मैं छोटा था,
शायद दोस्ती
बहुत गहरी हुआ करती थी,
दिन भर वो हुजूम बनाकर खेलना,
वो दोस्तों के घर का खाना,
वो लड़कियों की बातें,
वो साथ रोना...
अब भी मेरे कई दोस्त हैं,
पर दोस्ती जाने कहाँ है,
जिंदगी का सबसे बड़ा सच यही है..
जो अक्सर कबरिस्तान के बाहर
बोर्ड पर लिखा होता है...
"मंजिल तो यही थी,
बस जिंदगी गुज़र गयी मेरी
यहाँ आते आते
Omesha Arts
जब मई छोटा बच्चा था बड़ी शरारत करता था .............सच कहा रवि जी आप ने आज दुनिया बहुत छोटी हो गयी है , कलयुग (मशीन का युग )मे इंसान भी मशीन बन गया है
11/12/2011 7:57:31 PM
Ravikumar Vishwakarma
this is without...BODY
7/17/2011 12:29:27 PM
Ravikumar Vishwakarma
this is test with HTML
7/17/2011 12:24:02 PM
Ravikumar Vishwakarma
this is 2nd comment
7/17/2011 11:58:27 AM
Ravikumar Vishwakarma
Good Content
7/17/2011 11:43:02 AM
Ravikumar Vishwakarma
आप सभी का धन्यवाद!
8/3/2013 4:04:31 AM