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इस नश्वर संसार में सुख नहीं है। सुख पाने में नहीं है - सुख देने में है। मनुष्य के दुःख का कारण उसकी रूपमती इच्छाएं हैं, इन्हें जितनी ज्यादा सीमित करेंगे उतना ही सुख की अनुभूति होगी इच्छाएं ही। दुःख का मूल कारण हैं, यदि पूरी नहीं होंगी तो मन में कसक रहेगी और यदि वे पूरी हो भी जाएँ तो भी क्षणिक सुख की ही प्राप्ति हो सकती है, और तुरंत बाद उनका होना भी दुखदायी लगने लगेगा। अपने व्यक्तिगत जीवन में हम इसे अक्सर महसूस करते हैं। इस संदर्भ में एक कहानी का उल्लेख कर रहा हूँ संभव है किसी सज्जन को सोचने की एक नयी दिशा मिल जाए।
एक मजदूर घर से करीब ५ किलोमीटर की दूरी पर स्थित फैक्ट्री में काम करने रोजाना पैदल जाया करता था। साईकिल से जाने वालो को देख कर अक्सर उसके मन में इर्ष्या होती थी - की देखो ये कितने सुखी हैं। समय ने करवट बदली, उसके वेतन में कुछ वृद्धि हुई तो उसने एक साईकिल खरीद ली। अब वो रोजाना साईकिल से फैक्ट्री जाने लगा। लेकिन रास्ते में स्कूटर पर जाने वालों को वो बड़ी हसरत भरी निगाह से देखता और सोचता ये लोग कितने सुखी हैं, बिना श्रम के कैसे आसानी से कितनी जल्दी पहुँच जाते हैं। संयोग की बात की उसकी तरक्की हो गयी और उसे सुपरवाईज़र बना दिया गया। उसने एक स्कूटर खरीद लिया, और अब वो रोज फैक्ट्री स्कूटर से जाने लगा। अब रास्ते से गुजरने वाली कारों को देख कर उसे बड़ी जलन होती - सोचता देखो कैसी शान से जातें हैं। शायद ईश्वर ने उसकी इच्छा जान ली और थोड़े समय बाद ही उसे शिफ्ट इंचार्ज बना दिया गया। अब उसने एक कार खरीद ली और रोजाना कार से फैक्ट्री जाने लगा। लेकिन कुछ दिनों बाद ही वह बीमार पड़ गया। डाक्टर ने उसे दवाइयां दी और कहा की उसे कम से कम ४-५ किलोमीटर रोज पैदल चलना चाहिए, और उसे ठीक होने के लिए ऐसा करना अति।
आवश्यक है, अब घर में साईकिल, स्कूटर ,कार के होते हुए भी वो रोजाना पैदल ही फैक्टरी आता जाता है।
satish vshwakarma
great yarr bahut kuch sikhne ko mila....
6/9/2011 6:16:29 PM
Santosh Vishwakarma
very good shaym ji
5/9/2012 4:02:02 AM