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फीके रंग हुये जीवन के भूले सब सुर ताल । कितना बुरा जमाना आया जीना हुआ मुहाल ।
चार गुनी कीमत में बिकती घुइंया और तुरइया । एक चवन्नी से भी कम अब गिरकर हुआ रुपइया ।
आसमान में जा पहुँची है बड़े ठाठ से दाल । कितना बुरा जमाना आया जीना हुआ मुहाल ।
किस मुँह से हम तुम्हें बतायें कहते आती लाज । अपनी पहुँच से बाहर हो गर्इ रोटी और प्याज ।
घर आया मेहमान भी अब तो लगता है जंजाल । कितना बुरा जमाना आया जीना हुआ मुहाल ।
सोच रहे थे बच्चों को दिलवाते अच्छी षिक्षा । पढ़ लिखकर अधिकारी बनते मन में थी ये इच्छा ।
मंहगी षिक्षा देख के अपने उड़ गये सिर के बाल । कितना बुरा जमाना आया जीना हुआ मुहाल ।
बीमारी में कहे डाक्टर खाना है फल फ्रूट । उसकी सब बातें सुनते हैं पी कर खून के घूँट ।
देख दवा का पर्चा आँसू से भीगे रुमाल । कितना बुरा जमाना आया जीना हुआ मुहाल ।
बेटी हुर्इ सयानी उसकी करनी है शादी । बर्षां से बीमार चल रहे दादा और दादी ।
ऊपर से हम झेल रहे हैं सालों साल अकाल । कितना बुरा जमाना आया जीना हुआ मुहाल ।
फटे बिछौने पर सोते हैं कक्का और दद्दा । कहाँ लिखा है फोम का उनकी किस्मत में गद्दा ।
हाड़ तोड़ मेहनत करके भी अब तक हैं कंगाल । कितना बुरा जमाना आया जीना हुआ मुहाल ।
Nandlal V.
very nice
5/18/2014 10:31:47 PM
vijai sharma
good thinking for socialization ...
3/18/2014 8:43:43 AM
Manoj Vishwakarma
Good lines
3/6/2014 2:05:04 AM
Uttam Jangid
Very nice "Geet"
3/4/2014 5:05:38 AM
Anil Vishwakarma
Very nice "Geet"
3/3/2014 6:57:22 AM
Sanjay Vishwakarma
nice
4/10/2016 4:51:46 AM