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Mr Goma Ram
Mr Goma Ram ram@gomaram.com 9560744784
Subject : रिश्ते

रिश्तों को यूँ तोड़ते, जैसे कच्चा सूत, बंटवारा माँ-बाप का, करने लगे कपूत.
स्वार्थ की बुनियाद पर, रिश्तों की दीवार, कच्चे धागों की तरह, टूट रहे परिवार.
नयी सदी से मिल रही, दर्द भरी सौगात, बेटा कहता बाप से, तेरी क्या औकात.
प्रेम भाव सब मिट गया, टूटे रीति-रिवाज, मोल नहीं सम्बन्ध का, पैसा सिर का ताज.
भाई-भाई में हुआ, अब कुछ ऐसा वैर, रिश्ते टूटे खून के, प्यारे लगते गैर.
दगा वक़्त पर दे गए, रिश्ते थे जो खास, यारो अब कैसे करे, गैरों पर विश्वास.
अब तो अपना खून भी, करने लगा कमाल, बोझ समझ माँ-बाप को, घर से रहा निकाल.
होठों पर कुछ और था, मन में था कुछ और, मित्रों के व्यवहार ने, दिया हमें झकझोर.
अपनी ख्वाहिश भी यही, मिले किसी का प्यार, हमने देखा हर जगह, रिश्तों में व्यापार.
झूठी थी कसमें सभी, झूठा था इकरार, वो हमको छलता रहा, हम समझे है प्यार.
साथ हमारा ताज गए, मन के थे जो मीत, अब कैसे लिखे, मधुर प्रेम के गीत.
माँ की ममता बिक रही, बिके पिता का प्यार, मिलते हैं बाज़ार में, वफ़ा बेचते यार.
पानी आँखों का मरा, मरी शर्म औ लाज, कहे बहू अब सास से, घर में मेरा राज.
प्रेम, आस्था, त्याग अब, बीत युग की बात, बच्चे भी करने लगे, मात-पिता से घात.
भाई भी करता नहीं, भाई पर विश्वास, बहन पराई हो गयी, साली खासमखास.
जीवन सस्ता हो गया, बढे धरा के दाम, इंच-इंच पर हो रहा, भ्रातों में संग्राम.
वफ़ा रही ना हीर सी, ना रांझे सी प्रीत, लूटन को घर यार का, बनते हैं अब मीत.
तार-तार रिश्ते हुए, ऐसा बढ़ा जनून, सरे आम होने लगा, मानवता का खून.
मंदिर, मस्जिद, चर्च पर, पहरे दें दरबान, गुंडों से डरने लगे, कलयुग के भगवान.
कुर्सी पर नेता लड़ें, रोटी पर इंसान, मंदिर खातिर लड़ रहे, कोर्ट में भगवान.
मंदिर में पूजा करें, घर में करें कलेश, बापू तो बोझा लगे, पत्थर लगे गणेश.
बचे कहाँ अब शेष हैं, दया, धरम, ईमान, पत्थर के भगवान हैं, पत्थर दिल इंसान.
करें दिखावा भगति का, फैलाएं पाखंड, मन का हर कोना बुझा, घर में ज्योति अखंड.
पत्थर के भगवान को, लगते छप्पन भोग, मर जाते फुटपाथ पर, भूखे, प्यासे लोग.
फैला है पाखंड का, अन्धकार सब ओर, पापी करते जागरण, मचा-मचा कर शोर.
धरम करम की आड़ ले, करते हैं व्यापार, फोटो, माला, पुस्तकें, बेचें बंदनवार.
लेकर ज्ञान उधार का, बने फिरे विद्वान्, पापी, कामी भी कहें, अब खुद को भगवान.
पहन मुखौटा धरम का, करते दिन भर पाप, भंडारे करते फिरें, घर में भूखा बाप.
मंदिर में गुंडे पलें, मस्जिद में बदमाश, पत्थर को हरी मान कर, पूज रहे नादान.

Comments

Surjit kumar

Good

12/7/2013 3:11:31 AM

TANNU SHARMA

this is reality but not univershal.

11/20/2013 1:08:39 AM

Nandlal V.

realy nice line

11/5/2013 1:58:29 AM

Ram Awadh Vishwakarma

good poetry

11/3/2013 6:31:17 AM

Mohan Vishwakarma

Today's reality and nothing else...

10/29/2013 2:18:06 AM

Anil Vishwakarma

Really very good artical, real truth of samaj

10/28/2013 11:42:45 PM

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