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कुछ जो दूजों से अधिक समर्थ, पापी अट्टाहस करते घूम रहे!
सहमी हुई है हर सुकुमारी, मानवता आज बैठी है हारी!!
रिश्तों का मतलब रहा नहीं, नारी ने क्या-क्या सहा नहीं!
असंख्य रूप धरे दुशासन, करते है वस्त्रहरण की तैयारी!!
सतयुग में यह आरम्भ हुआ, शिखर कलयुग में इसने छुआ!
क्यों अत्याचार नारी पर होता, है मन पर बोझ बड़ा ये भारी!!
जग का आधार जिसे वेद मानते, फिर क्यों हम उसको तुच्छ जानते?
जीवन फूल उपजता जिससे, जग में नारी ही तो वह क्यारी!!
मानवता आज बैठी है हारी!!
मानवता आज बैठी है हारी!!
Manoj Vishwakarma
Now a days thats very much true
11/23/2013 9:45:45 PM
Anil Vishwakarma
Really good peoples are now hopeless and helpless
11/17/2013 10:21:46 PM
Anil Vishwakarma
Nice lines...
11/15/2013 12:02:18 AM
Dinesh Suthar
thnks to all
2/22/2014 12:38:00 AM