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Mr. Nandlal V.
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Subject : भ्रम का सिंहासन

एक सपना लेकर, सभी लोग आते हैं सामने,
दूर कहीं दिखाते हैं सोने-चांदी से बना सिंहासन,
कहते हैं, तुम उस पर बैठ सकते हो,
और कर सकते हो दुनियां पर शासन,
उठाकर देखता हूं दृष्टि, दिखती है सुनसार सारी सृष्टि,
न कहीं सिंहासन दिखता है, न शासन होने के आसार,
कहने वाले का कहना ही है व्यापार,
वह दिखाते हैं एक सपना, तुम हमारी बात मान लो,
हमार उद्देश्य पूरा करने का ठान लो,
देखो वह जगह जहां हम तुम्हें बिठायेंगे,
वह बना है सोने चांदी का सिंहासन,
उनको देता हूं अपने पसीने का दान,
उनके दिखाये भ्रमों का नहीं,
रहने देता अपने मन में निशान,
मतलब निकल जाने के बाद,
वह मुझसे नजरें फेरें,
मैं पहले ही पीठ दिखा देता हूं,
मुझे पता है,
अब नहीं दिखाई देगा भ्रम का सिंहासन,
जिस पर बैठा हूं वही रहेगा मेरा आसन.

Comments

Anil Vishwakarma

Good one

11/15/2013 12:02:41 AM

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