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मैं फिर, मानवता का संदेश सुनाने आया हूँ।
कुछ नया बताने नहीं,पुरातन मूल्य बचाने आया हूँ।।
भारतीय हम संस्कृति अपनी, युगों-युगों तक अमर रहे।
दूधों की नदियां बहती थी,पानी को हम तरस रहे ।
घर-घर में तुलसी का पौधा बाग लगाना भूल गये।
पेड़ो को थे देव मानते उन्हें बचाना भूल गये।
विकास कर रहे किस कीमत पर यही बताने आया हूँ।
कुछ नया बताने नहीं,पुरातन मूल्य बचाने आया हूँ।।
अतिथि सेवा करने वाले पड़ासियों को भूल गये।
भूखे मरते भाई हमारे,स्व-धर्म निभाना भूल गये।
गाँव छोड़कर शहर में आये,माँ-बापों को भूल गये।
अधिकारों को भोग रहे नित कर्तव्यों को भूल गये।
कर्म छोड़कर सुविधा भोगी यही बताने आया हूँ।
कुछ नया बताने नहीं,पुरातन मूल्य बचाने आया हूँ।।
वसुधा थी परिवार हमारा,लगाते आज तुम प्रान्त का नारा!
देशभक्ति का खुला पिटारा, भाई-भाई का हत्यारा।
इन्तजार में जब थी कारा, जननायक का रूप है धारा।
समस्याओं से किया किनारा, बॉस से मिलकर हड़पा सारा।
नर-सेवा नारायण सेवा, याद दिलाने आया हूँ।
कुछ नया बताने नहीं,पुरातन मूल्य बचाने आया हूँ।।
गैरों को था गले लगाया, अपनों को भी अब ठुकराया?
जाति-पाँति में पड़कर हमने झगड़ो को ही नित्य बढ़ाया।
लम्बा किया संघर्ष जिन्होंने देश की खातिर शीश चढ़ाया।
क्षुद्र स्वार्थ की खातिर हमने, पूर्वजों को आज भुलाया।
हाथी के पाँव में, सबका पाँव, यही बताने आया हूँ।
कुछ नया बताने नहीं,पुरातन मूल्य बचाने आया हूँ।।
http://shyam-vishwakarma.blogspot.com
Nandlal V.
nice
8/31/2014 12:27:20 AM