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दशरथ ने पशु समझ शब्दभेदी बाण जब छोड़ा था तो श्रवण कुमार की मृत्यु उस बाण के लगने से हो गयी थी। इस प्रसंग से दर्शित होता है कि वे शिकार किया करते थे, किन्तु क्या वे मांसभक्षण हेतु शिकार करते थे? अगर नहीं तो फिर मनोरंजन के लिए पशु हत्या करना गलत हुआ या नहीं?
अक्सर दशरथ जी पर ये मांस खाने वाले, व जीव हत्या के आक्षेप लगते रहते है। कई बार ऐसे प्रश्न देखे किन्तु इसका उत्तर नहीं दिखा। अतः यथायोग्य शंकानिवारण हेतु इसका उत्तर दिया जाता है:
महाराज दशरथ का परिचय, वाल्मीकीकृत रामायण मे, प्रथम जिस श्लोक मे मिलता है - उसमे दशरथ जी को वेदवेदार्थ जानने वाला, वेदानुकूल आचरण करने वाला एवं धर्म का विचार रखने वाला तथा उसे धारण करने वाला कहा गया है। राजा मनु से लेकर क्षिप्त, विक्षिप्त, ययाति, अष्टक, सगर, भागीरथ, हरिश्चंद, दशरथ, राम, कृष्ण, पांडु एवं युधिष्ठिर इत्यादि सभी राजाओं ने वेदों में वर्णित राजनीति की शिक्षा ली थी।
अब, "सुरां मत्स्यान्मधु मांसमासवकृसरौदनम्" - वेदो मे मांस खाने का विधान नहीं है, तथा मांस खाना निषेध बताते हुये मांस खाने वाले को राक्षस, अविचारी आदि कहते हुये धिक्कृत किया गया है।
अतः अगर दशरथ जी मांस खाने वाले होते तो उन्हे वेदानुसार... वेदानुकूल आचरण करने वाला नहीं कहा जाता बल्कि वेदविरुद्ध कर्म करने वाला, वेदो के विपरीत चलने वाला कहा जाता। अगर वे मांस खाने वाले होते तो उन्हे अविचारी कहा जाता किन्तु उन्हे तो धर्म का विचार रखने वाला कहा गया। एवं दशरथ जी द्वारा मांस खाये जाने का शुद्धवाल्मीकीय रामायण मे कोई वर्णन नहीं है। अतः उनके द्वारा मांस खाये जाने वाली बात पूर्णतः असत्य व मिथ्या सिद्ध होती है। साथ ही मांस खाने वाले को यज्ञदीक्षा नहीं दी जाती किन्तु दशरथ जी को दी गयी थी , इससे भी दशरथ जी के द्वारा मांस न खाये जाने की पुष्टि होती है । इसके अतिरिक्त दशरथ जी मनु परंपरा से थे एवं उन्हे मनु के समान राज करने वाला भी कहा गया है। अगर वे अभक्ष्य भक्षण करने वाले रहे होते तो यह सब नहीं कहा जाता। अतः दशरथ जी मांस नहीं खाते थे । एवं वाल्मीकि रामायण मे तो यहा तक कहा गया है कि उनके अयोध्या राज्य मे प्रजा भी वेदानुकूल आचरण करने वाली थी, कोई भी व्यक्ति अभक्ष्य पदार्थ का सेवन नहीं किया करता था।
अब प्रश्न आता है, अगर मांस नहीं खाते थे तो क्या मनोरंजन के लिए पशु-हत्या करते थे अथवा क्यो उस समय शिकार करने गए थे जब उनके बाण द्वारा श्रवण की हत्या अनजाने मे हो गयी थी?
तो इस विषय मे कहेंगे - श्रीवाल्मीकीयरामायण के अयोध्या कांड मे जहा ये वर्णन आता है वहा यह श्लोक आता है - "निपाने महिषम् रात्रौ गजं वाSभ्यागतं नदीम्।" इसमे स्पष्ट कहा गया है कि महाराज दशरथ का उद्देश्य, वनभैंसा, मदोत्मत्त गज एवं व्याघ्रादि दुष्ट एवं हिंसक पशुओ का वध अथवा शिकार करना था। वे हिंसक पशु जो मनुष्य व फसल आदि को हानि पहुचाने वाले थे।
किन्तु युवावस्था मे दशरथ जी ने इसके लिए गलत समय चुना एवं स्वयं को शब्दभेदी प्रसिद्ध करने की अभिलाषा थी, अतः उनकी इस गलती के कारण, हिंसक पशु के स्थान पर श्रवण का वध हो गया। ऐसा दशरथ जी रामायण मे स्वयं स्वीकार करते है एवं अपने इस कर्म को पापकर्म, निंद्य कर्म कहते हुये भारी दुखी होते है एवं स्वयं को धिक्कारते भी है।
अतः ये स्पष्ट हुआ कि दशरथ जी मनोरंजन हेतु शिकार करने नहीं गए थे। जो भी हिंसक पशु प्रजा को या प्रजा के लिए उपयोगी पदार्थो को हानि पहुचाते थे उनका वध अनुचित नहीं है। कुछ समय पूर्व तक भी जब बाघ आदि गांवो मे घुसकर बच्चो को खा जाया करते थे, स्त्रियो पुरुषो आदि पर हमला कर उन्हे मार दिया करते थे, गाँव वाले समूह बनाकर उन्हे मार दिया करते थे, सुरक्षा हेतु। आपके घर मे नन्हें बालक हो और कोई विषेला सर्प या जन्तु घर मे दिखे तो बालको व अपनी सुरक्षा के लिए उसे मार देते है न। मच्छर आदि को मारा जाता है या नहीं? जो जीव किसी भी प्रकार से मनुष्य के लिए हिंसक हो, हानि पहुचाने वाले हो, रोग-प्रदान करने वाले हो, मार देने वाले हो, तो उन्हे नष्ट करना अनुचित नहीं है। किन्तु किसी भी निर्दोष प्राणी को मारना महापाप है।
वेद मे भी कहा गया है... निरपराध पशुओ की हत्या न करो किन्तु अपराध करने वालो को दंड दो... जैसे... अथर्ववेद के दशमकाण्ड में कहा गया है कि, घातक प्रयोग करने वाले, बलशाली दुष्टो जो प्रजा का नाश करते है, उनका तू नाश कर।
इसी काण्ड के प्रथमसूक्त मे भी कहा गया है कि... जिस प्रकार वायु वृक्षो को तोड़ता है ऐसे ही तू हिंसा करने वालो का नाश कर।
एवं यहा कुछ लोग कहा करते है कि मृग का शिकार किया करते थे तो बतादे कि वेदानुकूल आचरण करने वाला राजा वेदाज्ञानुसार प्रजा को हानि पहुचाने वाले हिंसक जन्तुओ का ही शिकार करता था, इसका प्रमाण है... अथर्ववेद के दशमकाण्ड के प्रथमसूक्त मे कहा गया है कि... मृग को मारना वर्जित है। क्यो कि वह हिंसक पशु नहीं है।
अतः स्पष्ट है कि दशरथ जी न मांस खाते थे एवं न ही मनोरंजन हेतु पशु-हत्या करने गए थे। वैदिक धर्मानुसार निरपराध प्राणियों के प्रति हिंसा उनकी हत्या सर्वथा वर्जित है, एवं अपराधी जन्तुओ या मनुष्यो को हानि पहुचाने वालो को दंडित करने का विधान है। जो भी राजा या अन्य मनोरंजन हेतु या स्वाद हेतु किसी भी जीव की हत्या करे या की, वह पूर्णतः गलत है। यह उसका व्यक्तिगत दोष वा पाप है, वेद या वैदिक धर्म इसकी आज्ञा कदापि नहीं देते।यह धर्मविरुद्ध निंद्य कृत्य है।
Mohan Vishwakarma
Yahi satya hai... leking kafi log inn sab ko lekar bhramit hai
9/29/2013 11:02:50 PM
Deepak Vishwakarma
very usefull information thanks
9/28/2013 7:34:38 AM
Deepak Vishwakarma
very usefull information thanks
9/28/2013 7:34:33 AM
Ravikumar Vishwakarma
This is useful!
9/14/2013 11:43:58 PM
Manoj Vishwakarma
Very cleared writeup, will use this to answer others
9/12/2013 6:13:13 AM
Krishna Prasad Vishwakarma
bilkul sahi kaha aap ne Poonam ji
9/10/2013 11:27:44 PM
Poonam Vishwakarma
Nandlaal ji, shayad aapane thik se pada nahi, upar ke sentence mein Raja log shikaar kyon karate the. Wo apane shauk ke liye nahi balki, dusaron ki raksha ke liye jangali janwaron ka safaya karate the.
9/9/2013 10:02:24 PM
Nandlal V.
sir hum karte hi to apradh bodh hota hi wo karte the shauk hua karta tha
9/6/2013 10:24:31 AM
Anil Vishwakarma
It's very useful, specially when I need it.
9/5/2013 5:24:39 AM
Anil Vishwakarma
Thanks to all for valuable comments
10/11/2013 10:16:19 PM