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तवायफ की मांग में सिंदूर, लंगूर के हाथ में अंगूर।
बगुले की चोंच में हीरा, ऊंट के मुहं में जीरा।
बंदरों के पास कार, गधों के हाथ में सरकार।
कैसे-कैसे कारनामे हो रहे हैं, और आप रजाई ओढ़ के सो रहे हैं।
बोले प्रभु : मैं अपने काम में सिद्ध हस्त हूं, पर आजकल थोड़ा व्यस्त हूं।
फिर भी दिन रात आगे बढ़ रहा हूं, फिलहाल तो चार-पांच केस लड़ रहा हूं।
मैं बोल्यो - प्रभु! महंगाई बहुत बढ़ रही है,
सलमान खान की लोकप्रियता की तरह माथे पर चढ़ रही है।
अक्षय कुमार की तरह ठंडा पीजिए और एक बार फिर अवतार लीजिए।
बोले प्रभु : एक बार हम धरती पर विचरण करने निकले थे।
दो नेताओं ने हमारी जेब काट ली,
आधी-आधी दौलत दोनों पार्टियों ने बांट ली।
ये कलयुग है यहां देवताओं का वास नहीं होता।
ये दुनिया मैंने बनाई है विश्वास नहीं होता।
Satyapal Sharma
SATYAPALSINGH SHARMA NICE POEM
11/11/2015 11:20:32 PM
Deepak Vishwakarma
modi se milkar Bhgwan prasann ho jayenge.
9/28/2013 7:38:59 AM
Rajesh Sharma
Nice one keep it up....
9/15/2013 9:53:32 PM
Manoj Vishwakarma
Bhagwaan bhi yahi sochata hoga, kyon banaya
9/11/2013 5:37:20 AM
Poonam Vishwakarma
Kafi achchhi lines hai, lekin gaur karane wali baat hai. Aur ye sach bhi hai agar bhagwaan bhi samane aa kar khada ho jaye to log yahi bolenge, kya majaak kar raha hai, main kya bewkoof hoon.
9/9/2013 9:59:54 PM
Anil Vishwakarma
Sahi baat hai, ye duniya kya banane wale nein banayee hai ?
9/9/2013 9:56:35 PM
Satyapal Sharma
SATYAPALSINGH SHARMA NICE POEM
11/11/2015 11:20:32 PM