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ये मेरी भारत माँ है मुझे इससे प्यार है, सच कहू तो दिल से, इसे हम भारत कहते है जो की अपनी ऐतिहासिक और अतुल्य संस्कृति को बचाने के लिए अपने आप से लड़ रहा है! पूरे भारत में विविध संस्कृतियाँ है २ या ३ नहीं पूरे ६ धर्मयहाँ पाए जाते है! और वो है हिन्दू, मुस्लिम, सिख, जैन, बुद्ध और क्रिस्टियन! हिन्दू मुस्लिम हमेशा बाबरी मस्जिद और राम मंदिर को लेके लड़ते रहते है, सिख ने खालिस्तान माँगा था इंदिरा जी के कार्यकाल में क्रिस्टियन अपना धर्म बढ़ने में लगे है और जादातर अनुशुचित जाती के लोग हिन्दू से क्रिस्ट बन रहे है, क्योंकि आखिर उन्हें भी निम्न जाती का होने का धब्बा धोना है! इन सबका असर ये हुआ, की कुछ साल पहले दारा जी ने एक क्रिस्टियन धर्म प्रचारक को सोते वक़्त उनके दो बच्चों को आग में जिन्दा जला दिया था! ये एक कौतुहल का विषय बन गयी, हमारी पूज्य निय राज्यनितिक पार्टियों के लिए और उन्हें अपना वोट बैंक बढ़ने का एक नया बहाना मिल गया, जैसा की हर बार होता आया है, इस राजनीती न न जाने कितनी जिंदिगियाँ स्वाहा की है, लड़वाते य है लड़ते हम है, फायदा फिर इन्ही को होता है!
अब आप महाराष्ट्र और असम को ही ले लीजिये यहाँ धर्म और जाती नहीं मिली लड़ाने को तो इन्होने एक नया गाना गया, वो था जमीनी विविधता का, जैसे हमने अंग्रेजों को मार भगाया था "साईमन गो बैक" कह के इसी तरह कुछ लोग बोल रहे है "उ.प. और बिहारी गो बैक" अब सोचो जरा असम में कितने बिहारियों को मार डाला गया, हम बचे है जैन और बुद्धिस्ट के साथ ये लोग अभी चुप है, पर भविष्य कौन जानता है:)
पुराने समय में मेरे भारत को लोग सोने की चिड़िया कहते थे अंग्रेजी में ले तो गोल्डेन बर्ड उसका अर्थ भी होता था गोल्डेन अगर मै इसे विस्तारित करू तो हमारी चिड़िया(भारत) किसी घोसले में नहीं बल्कि मांद (डेन) में रहती थी और ये अटल सत्य है, पर अब नहीं अब तो बर्ड डेन है गोल्ड नहीं, हमारे यहाँ कुछ घुस्पयेठिये जैसे अँगरेज़ कुछ अरब देशों से जैसे महमूद गजनवी, मोहम्मद गौरी, बाबर, तैमूर लंग आये और यहाँ से सब कुछ उठा के ले गए, और हमे दुनिया के मानचित्र में गरीब देशों की श्रेणी में डाल गए, हम इस धब्बे को धो डालना चाहते थे पर इन राज नेतायों ने अपनी राजनीती की रोटियाँ सेकने के लिए हमे लडवाया और हम बेवकूफ बन के लडे जा रहे है कहने को किसी और धर्म या जाती से पर सच में तो अपने आप से, और बन गए बेचारे दुनिया की नजरों में! हमारे यहाँ के लचर कानून प्रक्रिया ही हैं जो विदेशी पूंजिकर्ता को बढ़ावा देते है और भारत उन्हें उनकी पूंजी का उपयोग करने के लिए सबसे सही बाजार दिखता है, और हमारे घरेलु उत्पाद उन्ही के सामने दम तोड़ देते है यह दुबारा हो रहा है, पहली बार जब हुआ था, तब हम २०० साल तक गुलाम बने रहे इस बार होगा तो न जाने कितने साल! मै तो तैयार हू क्या आप ??? ................पता है जवाब "न" ही होगा :)
आपको क्या लगता है, क्या हुआ था १९९४ में, एकदम से चौकाने वाली खबर आई की मिस यूनिवर्स और मिस वर्ल्ड भारत से ही है सुष्मिता सेन और ऐश्वर्या राय और वर्ष २००० में तो मिस यूनिवर्स लारा दत्ता, मिस वर्ल्ड प्रियंका चोपरा, और मिस एशिया पसिफिक दिया मिर्ज़ा बन गई! आपको क्या लगता है क्या हुआ हमारी भारत माँ को, एकदम से खूबसूरत और तेज सुंदरियाँ पैदा होने लग गई! अरे भाई कुछ नहीं दरअसल विदेशी पूंजी की नजर यहाँ थी, उन्हें अपने उत्पाद बेचने की भारत सबसे अच्छी जगह लगी और ये सुंदरियाँ उनकी दूत क्योंकि भारत में उत्पाद ऐसे हे बिकते है हम लोग हाई प्रोफाइल से काफी आकर्षित है.
पुराने समाये में हम लोग पूरी तरह कृषि पर निर्भर थे! तभी हम सोने की चिड़िया थे सारी पूंजी हमारी वही से आती, पर आज किसान की ही दशा बुरी है, कभी सूखे से तो कभी बाढ़ से मौत किसान की ही होती है, हम उत्पाद खरीदते है तो मल्टीनेशनल कंपनी से जो की डोलर्स खर्च करती है उसके विज्ञापन में ..... और वो विज्ञापन का पाखंड ही है, जो हमे मजबूर करता है उसे खरीदने में हमारे उद्योग धंदे इतना नहीं खर्च कर पाते, और अच्छे होते हुए भी जयादा लोग उन्हें खरीदते नहीं.
मेरे भाईयों बस मुझे ये हे कहना है, ये राजनीती से बहार निकलो, लचर कानून बदलो देखो भारत जल रहा है अपनी लगाई हुई आग में, तोड़ डालो हर उस समस्या को जो हमे भारत की प्रगति से रोकती है, गला घोट दो उस आतंकवाद का जो पडोसी ने फैलाया हुआ है ..... ताकि भारत वो भारत बन जाये, जहाँ कोई रात को भूखा न सोये, जहाँ पर हर बच्चा काम की बजाये पढ़ सके, जहाँ पर हर इंसान सुरक्षित महसूस करे .... और एक दिन "जन गन मन अधिनायक" के बोल जम्मू कश्मीर में भी गूंज उठे ..... ..येही है मेरे सपनो का भारत.