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Mr. Nandlal V.
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Subject : आभार

जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला, उस-उस राही को धन्यवाद।

जीवन अस्थिर अनजाने ही, हो जाता पथ पर मेल कहीं,
सीमित पग डग, लम्बी मंज़िल, तय कर लेना कुछ खेल नहीं।
दाएँ-बाएँ सुख-दुख चलते, सम्मुख चलता पथ का प्रसाद --
जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला, उस-उस राही को धन्यवाद।

साँसों पर अवलम्बित काया, जब चलते-चलते चूर हुई,
दो स्नेह-शब्द मिल गये, मिली नव स्फूर्ति, थकावट दूर हुई।
पथ के पहचाने छूट गये, पर साथ-साथ चल रही याद --
जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला, उस-उस राही को धन्यवाद।

जो साथ न मेरा दे पाये, उनसे कब सूनी हुई डगर?
मैं भी न चलूँ यदि तो क्या, राही मर लेकिन राह अमर।
इस पथ पर वे ही चलते हैं, जो चलने का पा गये स्वाद --
जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला, उस-उस राही को धन्यवाद।

कैसे चल पाता यदि न मिला होता मुझको आकुल अंतर?
कैसे चल पाता यदि मिलते, चिर-तृप्ति अमरता-पूर्ण प्रहर!
आभारी हूँ मैं उन सबका, दे गये व्यथा का जो प्रसाद --
जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला, उस-उस राही को धन्यवाद।

Comments

Nandlal V.

thanks for all

8/19/2013 1:58:20 AM

Poonam Vishwakarma

Aapka swagat hai

8/5/2013 10:23:06 PM

Manoj Vishwakarma

Welcomes you :)

8/1/2013 10:36:38 PM

Shyam Vishwakarma

वाह बहुत सुन्दर लाइन है........ हार्दिक आभार.....

7/31/2013 3:00:35 AM

Anil Vishwakarma

जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला, उस-उस राही को धन्यवाद। धन्यवाद। धन्यवाद।

7/29/2013 9:58:23 PM

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