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'माँ' जिसकी कोई परिभाषा नहीं,
जिसकी कोई सीमा नहीं,
जो मेरे लिए भगवान से भी बढ़कर है,
जो मेरे दुख से दुखी हो जाती है,
और मेरी खुशी को अपना सबसे बड़ा सुख समझती है,
जिसकी छाया में मैं अपने आप को महफूज़ समझता हूँ,
जो मेरा आदर्श है,
जिसकी ममता और प्यार भरा आँचल,
मुझे दुनिया से सामना करने की शक्ति देता है,
जो साया बनकर हर कदम पर मेरा साथ देती है,
चोट मुझे लगती है तो दर्द उसे होता है,
मेरी हर परीक्षा जैसे उसकी अपनी परीक्षा होती है,
माँ एक पल के लिए भी दूर होती है तो,
जैसे कहीं कोई अधूरापन सा लगता है,
हर पल एक सदी जैसा महसूस होता है,
वाकई माँ का कोई विस्तार नहीं,
मेरे लिए माँ से बढ़कर कुछ नहीं।
Shyam Vishwakarma
बहुत बढ़िया जिसकी ममता और प्यार भरा आँचल, मुझे दुनिया से सामना करने की शक्ति देता है,
3/24/2013 12:02:43 AM
Ravikumar Vishwakarma
Nice poetry...
3/23/2013 10:03:21 PM
Sanjay Vishwakarma
thnx
4/10/2016 4:48:46 AM