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Mr. Shyam Vishwakarma
Mr. Shyam Vishwakarma vishwakarma.sv@gmail.com N
Subject : चूल्हे की आग ...

क्या वो बचपन के दिन थे
जब हम अपने घर के बहार खेला करते थे...
और शाम होते ही अडोस पड़ोस
की औरतें एक दुसरे के घर से
आग मांग कर अपने घर की
चूल्हा जलाया करती थी...

मिटटी का चूल्हा में गोबर की
उपली और लकड़ी जला करती थी...
क्या बताऊँ वही राख,
खाद का काम किया करती थी...

वो स्वाद वो देशी अंदाज
अब हमेशा ही याद आता है...
इस भाग दौड़ की शहरी जिंदगी में
लिट्टी चोखा भी हमको तरसता है...

http://shyamvishwakarma.blogspot.in/2012/11/blog-post_3.html

Comments

Shyam Vishwakarma

समय निकाल कर हमारी पोस्ट पर अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए आप सभी का धन्यवाद.........

3/23/2013 11:42:08 PM

Omesha Arts

सही कहा रविजी आपने

3/23/2013 10:28:58 PM

Ravikumar Vishwakarma

Wo din hi kuchh aur the, jo kabhi wapas nahi ayenge...

3/23/2013 10:04:36 PM

Anil Vishwakarma

Truly, bachpan ki yaad tazaa ho gayee :)

3/23/2013 6:31:00 AM

Anil Vishwakarma

Bachpan ki yaad tazaa ho gayee.

2/21/2013 3:10:46 AM

Manoj Vishwakarma

Good one ...

2/20/2013 10:11:53 PM

Mohan Vishwakarma

Nice poem ...

2/20/2013 9:56:10 PM

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