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" महाभारत " के ध्रितराष्ट्र को कौन नहीं जानता ,
उसके अंधेपन को कौन नहीं जानता !
हम सभी ने महाभारत को कई बार पढ़ा है
उसकी कहानी को कईयों बार सुना है ,
साथ में ध्रितराष्ट्र के बारे में भी .........
कुछ की नजर में मजबूर और लाचार ,
शकुनी और दुर्योधन की शाजिश का शिकार .........
फिर भी इतिहास ध्रितराष्ट्र को ही दोषी मानता है !
खैर मुझे भी इस बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है !
बात हम अंधेपन की कर रहे हैं ........
उस अंधेपन की जो आँख होते हुए भी आँखें बंद कर बैठे हैं !
अभी हाल ही में हमने और पूरे देश ने आसाम मुंबई और
लखनऊ में हुए दंगे और " ईमान " वालों का बहशीपन को देखा है ,
और देखा वहां उपस्थित अंधे -बहरे , हाड - मांस के बने पुतलों ने
जिन्हें हम शायद इंसान कहते हैं , या कहते हुए भी शर्म आती है !
हाड-मांस के बने पुतलों में इंसान अब शायद ही बचे हों ........
इस तरह की घटनाओं ने एक बार फिर ये साबित कर
दिया कि हम ध्रतराष्ट्र की तरह अंधे हो चुके हैं जो सही
और गलत में अंतर नहीं कर पाते ,
सब कुछ हमारी आँखों के सामने हो जाता और
हम कुछ भी नहीं कर पाते .... शायद करना चाहते हों पर
हमारा जमीर तो मर चुका है ....शायद हम लकवाग्रस्त
शरीर और मन में हिम्मत ना जुटा पाए हों ......
कुछ भी हो पर सच तो ये है कि हम अंधे और बहरों
की तरह इस देश में जी रहे हैं ! क्या सही है क्या गलत है
सब जानते हैं फिर भी ......?
जब हम अपने साथ हुए
गलत का ही विरोध नहीं कर पाते ... जब हम अपने घर और
अपने आसपास होने वाली गलत बातों का ही विरोध नहीं
कर पाते तो ये समाज और देश में होने वाले गलत काम
और बुराई का विरोध कैसे कर पायेंगे ,
जब विरोध ही नहीं करेंगे तो खत्म कैसे करेंगे ........
शायद हमें सिर्फ और सिर्फ अपने आप से ही मतलब है
और हमें इसके अलावा कुछ भी नजर नहीं आता है .....
जब कभी हम पर कुछ घटित होता है या हम ऐसी किसी
घटना का शिकार होते हैं तब शायद हमारा अंधापन दूर होता है !
ये देश अब एक जंगल बन गया है जहाँ शेर कम इंसान की खाल
पहने भेड़िये ज्यादा हो गए हैं !
सब कुछ हमारे सामने घटित हो रहा है,
हमारी आँखों के सामने देश के दुश्मन देश को लूट रहे हैं और हम ........
हमारे अपने ही हमारे संस्कारों को मिटटी में मिला रहे हैं और हम ..............
हम भ्रष्ट राजनेताओं की गन्दी राजनीति का शिकार होकर अपनों की ही छाती में खंजर घोंप रहे है और हम .........
हम औरतों और बच्चों पर होते निर्मम अत्याचार को होते देख रहे हैं फिर भी हम ........
गरीब जनता की मेहनत और हक का पैसा भ्रष्ट अधिकारीयों और सफेदपोश नेताओं की तिजोरियों में जमा हो रहा है और हम ..........
हम जानबूझकर हर गलत और बुरे का साथ दे रहे हैं क्यों ? ..........
क्योकि अंधापन और बहरापन हमें विरासत में मिला है और विरासत में मिली हुई चीज बहुत लम्बे समय तक हमारे साथ चलती है !
ध्रितराष्ट्र से विरासत में मिले इस अंधेपन को मिटा दो और अपनी आँखें खोलो और देखो, ये दुनिया अब बदलाव चाहती है ............
Omesha Arts
हा हा हा... सही है मनोज भाई
3/23/2013 10:30:20 PM
Anil Vishwakarma
Haa haaa sahi kaha Manoj ji aapane...
3/23/2013 6:33:39 AM
Manoj Vishwakarma
Uss samay ek sakuni tha, isi liye ek hi krishna the, main to kahata hoon saare ke saare krishna ban jaate to sakooniyo ko tikane ka thikaana hi nahi milata.
2/20/2013 10:03:53 PM
Mohan Vishwakarma
Yenha to bahut saare sakooni hai, kis kis ke pichhe bhagenge.
2/20/2013 9:55:22 PM
Anil Vishwakarma
Shakuniyon ki sakrkaar hai ye, Inn logon se chhutkaara paana almost impossible.
11/1/2012 9:48:08 PM
Poonam Vishwakarma
Hamari ankho ke samane desh ke dushman desh ko loot rahe hain, aur hum hath pe hath dhare baithe, aaoo mitro hum eksath milkar innn dushmano ko maar bhagayen.
8/30/2012 3:55:05 AM
Pawan Vishwakarma
Kafi achcha lekha hai ye.... aur niche wala comment bhi ek had tak sahi hai.
8/30/2012 3:23:17 AM
Anil Vishwakarma
Shyam Ji, kya khub likha hai aapne, usss samay to sirf ek hi shakuni tha jisne poori mahabharat karwayi, likin kalyug mein to aise hajaaron-lakhon shakuni hai, ye andherapan to tabhi jayega jab bahut saare krishna jaise log ayenge.
8/30/2012 12:04:31 AM
Shyam Vishwakarma
मनोज जी...... हैं ना हमारे प्रभु श्री कृष्णा जी....... फिर चिंता कैसी है.......
3/24/2013 12:07:30 AM